अब लोगों से वक्त निकालकर पौधों से मिलने आ जाए। क्योंकि इनकी सोबत का जो असर है वो लोगों की सोबत से असरदार है। इनसे रिशेदारी आपको जिम्मेदार बनाती है। वक्त हो जाने पर इन्हें पानी ना पिलाया जाए तो यह आवाज लगाते रहते हैं। सूख जाएंगे हम कह कह कर बुलाते रहते हैं। फिर आप खुद ही जिम्मेदारी से इन्हें रोज पानी पिलाते रहते हैं। दिन भर खुद खड़े रहते हैं धूप में और आपको छांव देते हैं। जब आप इनको जान लेते हैं। फिर इन्हीं पे दिल इन्हीं पे जान देते हैं।

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